सिकन्दर का भारत पर आक्रमण
सिकन्दर का भारत पर आक्रमण-Alexander’s Invasion of India
सिकन्दर ने 326 ई ० पू ० भारत पर आक्रमण किया था । इस आक्रमण के लिए सिकन्दर को अनेक कारणों ने प्रेरित किया । इन कारणों का संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित अनुसार है
1. भारत की राजनीतिक स्थिति-Political Situation in India – भारत की शोचनीय राजनीतिक स्थिति ने सिकन्दर को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया । सिकन्दर के आक्रमण के समय उत्तर – पश्चिमी भारत अनेक छोटे – छोटे राज्यों में विभाजित था । इनमें एकता का सर्वथा अभाव था । वे सदैव एक – दूसरे से लड़ते रहते थे । वे अपने स्वार्थ के लिए कोई भी कदम उठा सकते थे । सिकन्दर इस स्थिति से भली – भान्ति परिचित था । वह इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठा कर भारत को अपने अधीन करना चाहता था ।
2. विश्व चैंपियन बनने की ख्वाहिश- Aspire to be World Champion) — सिकन्दर एक महत्त्वाकांक्षी शासक था । वह एक विश्व विजेता बनने की अभिलाषा रखता था । इस उद्देश्य से ही उसने अफ्रीका तथा एशिया के अनेक देशों पर अपनी विजय पताका फहराई । ईरान जैसे शक्तिशाली साम्राज्य को पराजित करने के पश्चात् उसके साम्राज्य की सीमा भारत के निकट आ गई थी । अतः उसने अगला कदम भारत को विजित करने के लिए उठाया ।
3. भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण-Invitation to Invade India कहा जाता है कि सिकन्दर के आक्रमण के समय तक्षशिला के शासक अम्भी तथा पोरस के मध्य सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा था । पोरस की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर अम्भी घबरा गया । उसने पोरस की शक्ति पर अंकुश लगाने तथा उसे नीचा दिखाने के उद्देश्य से सिकन्दर से सम्पर्क किया । उसने सिकन्दर के पास अपना दूत भेज कर उसे भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया । सिकन्दर इसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था । अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया ।
4. भारत का धन-The Wealth of India– भारत पर आक्रमण करने का सिकन्दर का एक अन्य उद्देश्य यहां का अपार धन प्राप्त करना था । उस समय भारत की कृषि , उद्योग तथा व्यापार बहुत उन्नत थे । भारत के माल की विदेशों में बहुत मांग थी । अतः भारत उस समय विश्व में सोने की चिड़िया ‘ के नाम से जाना जाता था । सिकन्दर भारत से धन प्राप्त कर अपनी स्थिति को अधिक सुदृढ़ करना चाहता था ।
2. सिकन्दर का अभियान-The Campaign of Alexander
326 ई ० पू ० सिकन्दर भारत विजय की ओर अग्रसर हुआ । हिन्दूकुश पर्वतीय प्रदेश का शासक शशि गुप्त बहुत कायर निकला । उसने बिना युद्ध किए ही सिकन्दर की अधीनता स्वीकार कर ली । इससे सिकन्दर का उत्साह बढ़ गया । उसने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित किया । इसके एक भाग का नेतृत्व उसने स्वयं सम्भाला तथा दूसरे भाग का नेतृत्व अपने दो सेनापतियों ( हैप्सप्यन तथा पर्डिसस ) को सौंपा । सिकन्दर के सेनापतियों ने सर्वप्रथम अष्टक राज्य पर आक्रमण किया । इसके शासक अष्टकराज ने असाधारण वीरता का प्रदर्शन करते हुए सिकन्दर की सेना का सामना किया । अन्त में वह लड़ता हुआ शहीद हो गया । दूसरी ओर सिकन्दर ने सिन्धु नदी के पार अनेक कबीलों को पराजित किया । उसके आक्रमण का अस्सकीनीस कर्बले ने प्रबल विरोध किया तथा उसकी सेना के खूब दांत खट्टे किए ।
इस कबीले की स्त्रियों ने भी पुरुषों की तरह वीरता के असाधारण प्रमाण दिए । अन्ततः सिकन्दर उनके दुर्ग मसग को विजित करने में सफल हो गया । पर्वतीय क्षेत्रों को विजित करने के पश्चात् सिकन्दर तक्षशिला की ओर बढ़ा । जब यह समाचार यहां के शासक अम्भी को प्राप्त हुआ तो वह सामना करने की अपेक्षा उसका स्वागत करने के लिए चल पड़ा । उसने एवं कुछ अन्य छोटे शासकों ने सिकन्दर का आधिपत्य स्वीकार कर लिया । इससे सिकन्दर का साहस और बढ़ गया ।
तक्षशिला में कुछ दिन विश्राम करने के पश्चात् सिकन्दर ने अपने एक राजदूत के हाथ पोरस को यह सन्देश भेजा कि वह उसका आधिपत्य स्वीकार कर ले । पोरस ने दूत के द्वारा सिकन्दर को यह निडरतापूर्ण सन्देश भेजा कि वह सीमा पर उपहारों से नहीं , अपितु शस्त्रों से सिकन्दर का स्वागत करेगा । जब सिकन्दर ने ये शब्द सुने तो उसने सेनाओं को तुरन्त उसके राज्य पर आक्रमण करने का आदेश दिया । जब ये सेनाएं झेलम नदी के तट पर पहुंचीं तो उस समय भारी वर्षा हो रही थी । अतः सिकन्दर के लिए इस नदी को पार करना बहुत कठिन था , परन्तु उसने साहस से काम लिया । उसने 27 किलोमीटर उत्तर में जाकर अपने 1100 सैनिकों सहित नदी को पार कर लिया ।
पोरस के पुत्र ने उसे रोकने का प्रयास किया , परन्तु उसे सफलता न मिली । वह लड़ता हुआ मारा गया । इस समय के दौरान सिकन्दर के शेष सैनिक भी उसके साथ आ मिले । कर्री के मैदान में सिकन्दर और पोरस की सेनाओं के बीच बहुत घमासान युद्ध हुआ । इस युद्ध के अन्त में पोरस की पराजय हुई तथा उसे बन्दी बना लिया गया । जब पोरस को सिकन्दर के सम्मुख प्रस्तुत किया गया तो सिकन्दर ने उससे पूछा कि तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए । पोरस ने बड़ी निडरतापूर्वक यह उत्तर दिया कि जैसा एक राजा दूसरे राजा से करता है ।
इस उत्तर को सुनकर सिकन्दर बहुत प्रसन्न हुआ तथा उसने पोरस का राज्य उसे लौटा दिया । इस प्रकार वे एक – दूसरे के मित्र बन गए । अपनी विजय के उपलक्ष्य में सिकन्दर ने झेलम नदी के पूर्वी तट पर बूकेफाल और निकाया नामक दो नगर बनवाए तत्पश्चात् सिकन्दर ने चिनाब नदी को पार किया । यह समाचार सुनते ही छोटा पोरस सामना किए बिना ही मगध की ओर भाग गया । इस प्रकार सिकन्दर ने बिना किसी विरोध के उसके राज्य पर अधिकार कर लिया । जब सिकन्दर आगे बढ़ रहा था तो सांगला नामक स्थान पर कठोई कबीले ने उसका डटकर सामना किया । यह मुकाबला इतना कठोर था कि सिकन्दर को सहायता के लिए पांच हज़ार सैनिक पोरस से मंगवाने पड़े ।
अन्ततः सिकन्दर विजयी रहा और उसने क्रोध में आकर सांगला को नष्ट कर दिया । कठोई कबीले को पराजित करने के पश्चात् सिकन्दर की सेनाएं ब्यास नदी के तट पर पहुंचीं । यहां पर पहुंचकर सिकन्दर की सेनाओं ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । सिकन्दर ने सैनिकों को प्रोत्साहित करने के बहुत प्रयत्न किए , परन्तु उसे सफलता प्राप्त न हुई । इसलिए सिकन्दर को वापस लौटने पर विवश होना पड़ा । सिकन्दर के ये सैनिक जिन्होंने महान् विजयें प्राप्त की थीं , ब्यास नदी से आगे बढ़ने से क्यों इन्कार किया था , इसके विषय में इतिहासकारों में मतभेद हैं । कुछेक के विचारानुसार इन सैनिकों को यूनान से प्रस्थान किए हुए पर्याप्त समय हो चुका था और निरन्तर युद्धों से वे थक चुके थे ।
दूसरा , उन्हें अपने घरों की याद सता रही थी । कुछ अन्य के विचारानुसार सिकन्दर के सैनिकों ने इसलिए आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया था क्योंकि आगे मगध का शक्तिशाली साम्राज्य था जिससे टक्कर लेने का उन्हें साहस न हुआ । सिकन्दर की वापसी यात्रा सरल न थी । मार्ग में उसे सिवि , क्षुद्रक और मल्लोई इत्यादि कबीलों से दो – दो हाथ करने पड़े । इन कबीलों के कड़े विरोध के कारण सिकन्दर को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । सिकन्दर को यूनान लौटना नसीब न हुआ | 323 ई ० पू ० में बेबीलोन में सिकन्दर की बुखार से मृत्यु हो गई । उस समय उसकी आयु केवल 33 वर्ष थी ।
3. भारतीयों की हार के कारण – Reasons for The Defeat of Indians
सिकन्दर के हाथों भारतीयों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे । प्रथम , सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि भारतीयों में राजनीतिक एकता का अभाव था । वे परस्पर लड़ते – झगड़ते रहते थे । इस परस्पर फूट के कारण सिकन्दर के लिए उन्हें पराजित करना बहुत सरल हो गया । द्वितीय , सिकन्दर स्वयं एक महान योद्धा और निपुण सेनापति था । उसने बड़े – बड़े साम्राज्यों को क्षत – विक्षत करके रख दिया था । उसके समक्ष भारतीय राजा युद्ध कला में इतने निपुण नहीं थे । तृतीय , भारतीय सेनाएं यद्यपि बहुत विशाल थीं , परन्तु उनमें यूनानियों की तरह अनुशासन और संगठन का अभाव था ।
चतुर्थ , यूनानियों की युद्ध – विधि भारतीयों से अधिक उत्तम थी । उनके तीव्र गति के घोड़ों के समक्ष भारतीयों के हाथी और भारी रथ पूर्णतः विफल प्रमाणित हुए । पांचवां , युद्ध के समय मूसलाधार वर्षा हो रही थी , जोकि भारतीयों के लिए बहुत हानिप्रद प्रमाणित हुई । इसका कारण यह था कि उनके भारी रथ दलदल में फंस गए जिसके कारण यूनानी सैनिकों ने उन पर सरलतापूर्वक अधिकार कर लिया ।
4. सिकंदर के आक्रमण का प्रभाव – Effects of Alexander’s Invasion
सिकन्दर के आक्रमण के भारतीय इतिहास पर क्या प्रभाव पड़े , इसके सम्बन्ध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद हैं । यूनानी इतिहासकारों ने इस आक्रमण के प्रभावों को बहुत बढ़ा – चढ़ाकर बताया है जबकि भारतीय लेखकों ने इस आक्रमण की उपेक्षा की है । समकालीन हिन्दू , बौद्ध और जैन ग्रन्थों में इस आक्रमण का कोई विशेष वर्णन नहीं किया गया । इसमें कोई सन्देह नहीं कि सिकन्दर के द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण के कोई स्थाई प्रभाव नहीं पड़े ।
इसका कारण यह था कि सिकन्दर भारत में अल्पकाल ( 19 मास ) के लिए रहा । इस समय के दौरान वह युद्धों में ही व्यस्त रहा जिसके कारण वह अपने अधिकृत क्षेत्रों को संगठित करने की ओर ध्यान न दे पाया । दूसरा , उसने केवल पश्चिमोत्तर भारत के कुछेक क्षेत्रों पर ही विजय प्राप्त की थी जिसके कारण उसके आक्रमण का शेष भारत पर कोई प्रभाव न पड़ा । तीसरा , भारत पर आक्रमण के शीघ्र पश्चात् उसकी मृत्यु हो गई थी । वह पुनः अपने देश लौट भी न पाया । परिणामस्वरूप उसके द्वारा भारत पर अधिकार करने का और वहां पर यूनानी संस्कृति का प्रसार करने का उसका स्वप्न साकार न हो पाया । परन्तु दूसरी ओर हम इस आक्रमण के भारतीय इतिहास पर पड़े अप्रत्यक्ष प्रभावों की अवहेलना नहीं कर सकते । इन प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
2. इतिहास के निर्माण में योगदान -Contribution in the Construction of History – सिकन्दर के आक्रमण ने भारतीय इतिहास के निर्माण में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया । उसके आक्रमण से पूर्व के इतिहास को जानने के लिए हमें तिथियों के अभाव के अतिरिक्त अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । हम निश्चित रूप से यह नहीं कह सकते कि कोई घटना किस समय हुई । सिकन्दर के आक्रमण की तिथि 326 ई ० पू ० को इतिहासकार प्रमाणिक मानते हैं । इस तिथि को मुख्य रखकर भारतीय इतिहास को क्रम देने में बहुत सहायता मिली । दूसरा , सिकन्दर के आक्रमण के समय बहुत से यूनानी इतिहासकार उसके साथ भारत आए थे । इन इतिहासकारों की कृतियां भारतीय इतिहास के निर्माण में बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुई ।
1. चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय -Rise of Chandragupta Maurya – सिकन्दर के आक्रमण ने भारत के पश्चिमोत्तर में स्थित बहुत से राज्यों को पराजित करके उनकी शक्ति को दुर्बल बना दिया था । परिणामस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य को इन राज्यों को विजित करने में कोई विशेष कठिनाई न हुई । उसने इन राज्यों को समाप्त करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की । इस प्रकार इस विशाल साम्राज्य की स्थापना में सिकन्दर का आक्रमण अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी था ।
6. ज्योतिष और चिकित्सा के क्षेत्रों में प्रभाव-Impact in the fields of Astrology and Medicine— यूनानियों से पूर्व यद्यपि भारतीयों ने ज्योतिष और चिकित्सा के क्षेत्रों में पर्याप्त विकास कर लिया था , परन्तु यूनानियों ने इन दोनों क्षेत्रों में भारतीयों को नवीन जानकारी प्रदान की । उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सिकन्दर का आक्रमण प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी । इस आक्रमण के यद्यपि प्रत्यक्ष प्रभाव न पड़े , परन्तु इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव बहुत महत्त्वपूर्ण थे ।
5. कला के क्षेत्र में प्रभाव-Impact in the field of Art — सिकन्दर के आक्रमण ने भारतीय कला पर बहुत गहरा प्रभाव डाला । दोनों संस्कृतियों के समन्वय के परिणामस्वरूप एक नई शैली अस्तित्व में आई जो गान्धार शैली कहलाई । इस शैली के कलाकारों ने जो मूर्तियां बनवाईं , वे न केवल अति सुन्दर हैं , अपितु सजीव भी लगती हैं । वास्तव में गान्धार शैली ने भारतीय मूर्तिकला के क्षेत्र में एक नई क्रान्ति लाई । यूनानियों से सम्पर्क के कारण भारतीयों ने बढ़िया किस्म के सिक्के बनाने की कला सीखी । इससे पूर्व भारतीयों के सिक्के जिन्हें पंचमार्क कहा जाता था , बड़े बेढबे होते थे । इनके अतिरिक्त भारतीय भवन निर्माण कला पर भी यूनानी कला का प्रभाव पड़ा ।
4. व्यापार को प्रोत्साहन -Impetus to Trade— सिकन्दर के आक्रमण के कारण भारतीयों को पश्चिमी देशों की ओर जाने वाले तीन नए व्यापारिक मार्गों का ज्ञान हुआ । इनमें से दो मार्ग थल के थे और एक जल मार्ग था । इन मार्गों के कारण भारतीय वाणिज्य और व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला ।
3. युद्ध – नीति में परिवर्तन -Change in Warfare Strategy – सिकन्दर के आक्रमण के दौरान भारतीयों को प्रत्येक स्थान पर पराजयों का सामना करना पड़ा था । इसका कारण यह नहीं था कि वे किसी प्रकार से कम वीर थे , अपितु उनके सैनिक संगठन में त्रुटियां थीं । सिकन्दर की विजयों से उन्होंने यह अनुभव किया कि अच्छी शिक्षित सेना यद्यपि वह संख्या में कम ही क्यों न हो , एक विशाल अशिक्षित सेना को सरलतापूर्वक पराजित कर सकती है । इसलिए भारतीय शासकों ने अपनी सेनाओं को नवीन विधि से संगठित करने की ओर ध्यान दिया ।