उत्तराधिकार सम्बन्धी सामान्य नियम
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम , 1956 में उत्तराधिकार के सम्बन्ध में जिन साधारण उपबन्धों का उल्लेख किया गया है , उनको बताइये । State the general provision relation to the succession as provided in the Hindu Succession Act , 1956 .
उत्तराधिकार सम्बन्धी सामान्य नियम ( General provision relating to succession ) – हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम , 1956 की धारा 18 से 28 तक उत्तराधिकार सम्बन्धी सामान्य नियम वर्णित किये गये हैं जो कि निम्नलिखित हैं
( 1 ) पूर्णरक्त उत्तराधिकारियों को अर्द्ध – रक्त सम्बन्धी उत्तराधिकारियों पर अधिमान्य प्राप्त है— धारा 18 के अनुसार , यदि किसी निर्वसीयत के दायदों का उसके सम्बन्ध का स्वरूप अन्य प्रत्येक बात ‘ समान हो तो निर्वसीयत के सगे सम्बन्ध में आने वाले दायद को सौतेले सम्बन्ध में आने वाले दायद के समक्ष अग्रता प्राप्त होगी अर्थात् सम्पत्ति पहले सगे सम्बन्ध के दायद को प्राप्त होगी तत्पश्चात् सतिले सम्बन्ध के दायद को । धारा 18 इस प्रकार है
” निर्वसीयत का दायद जो सगा सम्बन्धी है , सौतेले सम्बन्धी की अपेक्षा अधिमान्य होगा . यदि सम्बन्ध का स्वरूप अन्य प्रत्येक बात में एक समान हो ।”
एक ही पत्नी द्वारा किसी सामान्य पूर्वज की सन्तानों को सामान्य पूर्वज की पत्नियों द्वारा उत्पन्न सन्तानों की अपेक्षा अधिक मान्यता दी जायेगी ।
पुनः नारायण बनाम पुष्प रंजिनी के बाद में केरल उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि जहाँ उत्तराधिकार का प्रश्न सगी बहिन एवं चचेरे भाई के बीच है वहाँ सगी बहिन चचेरे भाई को अपवर्जित करके सम्पत्ति दाय में प्राप्त करेगी ।
उदाहरण
( क ) एक सगी माता सौतेले माता की अपेक्षा अधिमान्य है । एक सगा चाचा सौतेले चाचा की अपेक्षा अधिमान्य है ।
( ख ) निर्वसीयत के सगे और सौतेले भाईयों के होने की स्थिति में सगे भाई का दाय प्राप्त करने में अग्रता प्राप्त होगी , किन्तु सौतेले भाई तथा सगे भाई के पुत्र के बीच सौतेले भाई को अग्रता प्राप्त होगी ।
( 2 ) दो या दो से अधिक दायदों के उत्तराधिकार का ढंग- धारा 19 के अन्तर्गत दो या दो से अधिक वारिस ( heirs ) सामान्य आभोगी के रूप में उत्तराधिकार प्राप्त करेंगे न कि बराबर – बराबर एक हिस्सा प्राप्त करेंगे जो इस प्रकार है
“ यदि दो या दो से अधिक दायद निर्वसीयती की सम्पत्ति के एक उत्तराधिकारी होते हैं । तो वे सम्पत्ति को –
( क ) इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से प्रदत्त , अन्यथा उपबन्धित को छोड़कर व्यक्तिपरक न कि पितृपरक आधार पर प्राप्त करेंगे , और
( ख ) सामान्य आभोगियों के रूप में न कि संयुक्त आभोगियों के रूप में प्राप्त करेंगे ( as tenants is common and not as joint tenants )
सुन्दरमल बनाम सदाशिव वाले वाद में यह कहा गया है कि सहविधाएँ सह – अभोगी की प्रस्थिति में हैं अतः किसी भी विधवा को यह हक होगा कि वह अतिचारी को निष्कासित करने के लिए सह – विधवा को बिना पक्षकार बनाए हुए वाद संस्थापित करें ।
( 3 ) गर्भस्थ बालकों का अधिकार – धारा 20 के अन्तर्गत गर्भस्थ बालक के विषय में नियम प्रदान किया गया है , जो इस प्रकार है
“जो बालक निर्वसीयत की मृत्यु के समय गर्भ में स्थित था और जो तत्पश्चात् जीवित पैदा हुआ है निर्वसीयत के दाय भाग के विषय में उसके वही अधिकार होंगे जो यदि निर्वसीयत की मृत्यु के पूर्व उत्पन्न हुआ होता तो उसके होते और ऐसी अवस्था में विरासत निर्वसीयत की मृत्यु के दिनांक से प्रभावशील होकर उसमें निहित समझी जायेगी । ”
इस धारा के लागू होने के लिए दो शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है । प्रथमतः सन्तान का निर्वसीयती की मृत्यु के समय गर्भ में होना आवश्यक है । दूसरे सन्ताने को जीवित उत्पन्न होना चाहिए । इस प्रकार यदि उपर्युक्त दोनों शर्तें पूरी हो जाती हैं तो इस प्रकार का बालक दाय प्राप्त के सम्बन्ध में वही हक रखता है एक बालक निर्वसीयत की मृत्यु के समय रखता है ।
(4) एक साथ मृत्य के विषय में उपधारणा धारा 21 में यह नियम दिया गया है “जब. दो व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में मरे हैं जिसमें यह अनिश्चित है कि क्या उसमें से कोई और… यदि हो तो कौन-सा दूसरे का उत्तरजीवी रहा वहां जब तक कि विरुद्ध सिद्ध न हो । सम्पत्ति के उत्तराधिकार सम्बन्धी सब प्रयोजनों के लिए यह उपधारणा की जायेगी कि कम आयु वाला अधिक आयु वाले का उत्तरजीवी रहा।” इस प्रकार जहाँ दो व्यक्ति जो कि ऐसी परिस्थिति में मरे हैं जिसमें यह अनिश्चित है कि कौन व्यक्ति पहले मरा इस नियम की सृष्टि उन स्थितियों लिए की गई है जहाँ कि दो सम्बन्धी जिनमें एक-दूसरे का दायद है किसी दुर्घटना में एक साथ मर जाते हैं। उदाहरण लिए यदि किसी ट्रेन दुर्घटना में कोई पिता और पुत्र प्रस्त होते हैं और जब लाशें निकाली जाती हैं तो पुत्र मरा हुआ पाया जाता है और पिता की सांस चलती हुई किन्तु वह निकाले जाते समय ही मर जाता है तो ऐसी अवस्था में उपयुक्त नियम नहीं लागू होगा और पुत्र पहले तथा पिता बाद में मरा हुआ समझा जायेगा ।
(5) उन अवस्थाओं में सम्पत्ति अर्जित करने का अधिमानाधिकार – धारा 22 के अन्तर्गत निर्वसीयती के वर्ग (1) के कुछ वारिस सम्पत्ति बेचे तो अन्य वारिसों के अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिमानपूर्ण अधिकार प्रदान किया गया है।
(6) निवास गृह के बारे में विशेष उपबन्ध— संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को सुरक्षित रखने के लिए धारा 23 में यह उपबन्ध किया गया है कि कोई स्त्री उत्तराधिकारिणी रिहायसी मकान के विभाजन का वाद प्रस्तुत नहीं कर सकती वह उसमें रह सकती है। धारा 23 इस प्रकार है- “जहाँ निर्वसीयत हिन्दू अनुसूची के धारा (1) उल्लिखित पुरुष और स्त्री दायद को अपने पीछे उत्तरजीवी छोड़ता है और उसकी सम्पत्ति में उसके अपने परिवार के सदस्यों के पूर्णतः दखल में कोई निवास गृह सम्मिलित है वहाँ इस अधिनियम में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए भी किसी ऐसे स्त्री दायद के निवास गृह के विभाजन करने के दावे का अधिकार तब तक उत्पन्न नहीं होगा जब तक कि पुरुष दायद उसमें अपने क्रमागत अंशों का विभाजन पसन्द न करें, किन्तु स्त्री दायद उसमें निवास की हकदार होगी ।
परन्तु जहाँ ऐसी स्त्री दायद पुत्री है, वहाँ वह निवास-गृह में निवास करने के अधिकार के लिए उसी दशा में हकदार होगी जब तक कि वह अविवाहित है अथवा अपने पति द्वारा परित्यक्त कर दी गई है या उससे पृथक् हो गयी या विधवा है ।
(7) पुनर्विवाह करने वाली कुछ विधवाएँ विधवा के रूप में दाय प्राप्त करने की अधिकारिणीन होंगी – धारा 24 के अन्तर्गत पुनर्विवाह करने वाली कुछ विधवाएँ विधवा के रूप में दाय प्राप्त नहीं कर सकतीं, जैसे मृतक पुत्र की विधवा पत्नी पूर्व मृतक के पूर्व मृतक पुत्र की विधवा पत्नी, भाई की विधवा पत्नी ।
(8) हत्यारा अनर्ह कर दिया जाता है- धारा 25 के अन्तर्गत हत्या करने वाले व्यक्ति को उत्तराधिकार पाने से वंचित कर दिया है ।
(9) धर्म परिवर्तन करने वाले के वंशज अनर्ह होंगे- धर्म परिवर्तन करने पर एक व्यक्ति उत्तराधिकारी नहीं हो सकता । अतः धारा 26 के अन्तर्गत धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति सम्पत्ति में हक पाने का अधिकारी है ।
(10) जब दायद अनर्ह कर दिये गये हों तब उत्तराधिकार-धारा 27 में यह बताया गया है यदि कोई व्यक्ति उत्तराधिकार से वंचित किया गया है या अक्षम है तो यह समझा जायेगा
कि वह निर्वसीयत से पहले मर चुका है। किसी सम्पत्ति में दाय प्राप्त करने से किसी रोग (disease), हीनता ( defect) अथवा अंग
(11) रोग अंगहीनता इत्यादि अनर्हता न होगी- धारा 28 के अनुसार, “कोई भी व्यक्ति किसी सम्पत्ति में दाय प्राप्त करने से किसी रोग (disease), हीनता ( defect) अथवा अंग वक्रता (deformity) के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। (धारा 28) |