वसीयती संरक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में क्या प्रावधान किये गए  हैं

हिन्दू अवयस्कता और संरक्षक अधिनियम के अन्तर्गत वसीयती संरक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में क्या प्रावधान किये गये हैं ? ऐसे संरक्षक की क्या शक्तियाँ हैं ? ( What are the provisions of the Hindu Minority and Guardianship act for appointment of a Guardian under a will ? What are the powers of such a guardian ? )

वसीयती संरक्षक ( Testamentary Guardian ) – पिता अथवा माता द्वारा अपनी अवयस्क सन्तान के शरीर अथवा सम्पत्ति अथवा दोनों के लिए वसीयत में नियुक्त किये  गये संरक्षक को ‘ वसीयती संरक्षक ‘ कहते हैं । वसीयती संरक्षक से तात्पर्य “ उन संरक्षकों से है जो अवयस्क के प्राकृतिक संरक्षक की इच्छा से नियुक्त किये जाते हैं तथा अवयस्क के के रूप में कार्य करने के अधिकारी होते हैं । इस प्रकार के संरक्षक प्राकृतिक संरक्षकों की मृत्यु के बाद ही क्रियाशील होते हैं ।

वसीयती संरक्षक की नियुक्ति

संरक्षक कौन नियुक्त कर सकता है — हिन्दू अवयस्कता और संरक्षकता की धारा 9 के अनुसार निम्नलिखित व्यक्ति किसी को अवयस्क के शरीर के तथा सम्पत्ति के लिए संरक्षक नियुक्त कर सकते हैं

( 1 ) पिता , नैसर्गिक अथवा दत्तक ग्रहीता ।

( 2 ) माता , नैसर्गिक अथवा दत्तक ग्रहीता ।

( 3 ) विधवा माता , नैसर्गिक अथवा दत्तक ग्रहीता ।

 

पिता– कोई भी हिन्दू पिता जो नैसर्गिक संरक्षक के रूप में कार्य करने का अधिकारी है • तथा जो अधिनियम द्वारा अवयस्क का नैसर्गिक संरक्षक होने के अयोग्य नहीं हो गया है , अपनी इच्छा द्वारा अवयस्क के शरीर अथवा उसकी विभक्त सम्पदा अथवा दोनों के लिये संरक्षक नियुक्त कर सकता है । अवयस्क का संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में अविभक्त हक कर्त्ता के . हाथ में रहता है , अतः अविभक्त सम्पत्ति के लिए संरक्षक नहीं नियुक्त किया जा सकता है ।

माता –  कोई भी माता जो अवयस्क का प्राकृतिक संरक्षक होने की अधिकारिणी है तथा किसी भी कारणवश ( जैसे हिन्दू न रह गई हो , संन्यासी अथवा यति हो गई हो अथवा स्वयं अवयस्क हो ) अयोग्य नहीं हो गई हो , इच्छा – पत्र द्वारा अवयस्क के शरीर अथवा सम्पत्ति के . लिये अथवा दोनों के लिए संरक्षक नियुक्त कर सकती है 

विधवा – कोई हिन्दू विधवा अपने वैध पुत्रों का प्राकृतिक संरक्षक होने की अधिकारिणी है । इच्छा – पत्र द्वारा अवयस्क के शरीर अथवा सम्पत्ति दोनों के लिए एक संरक्षक नियुक्त कर सकती है । उसके पति द्वारा नियुक्त किया गया कोई संरक्षक उसके द्वारा नियुक्त किये गये संरक्षक के समकक्ष प्रभावहीन होगा ।

वसीयती संरक्षक की अर्हताएँ—( 1 ) वसीयत संरक्षक को हिन्दू होना चाहिए जिसने संसार का परित्याग न किया हो , तथा ( 2 ) उसे स्वस्थ चित्त होना चाहिए ।

वसीयती संरक्षक  के अधिकार — हिन्दू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम की धारा 9 ( 5 ) के अन्तर्गत यह कहा गया है कि वसीयत संरक्षक को वे सब शक्तियाँ और अधिकार वसीयती संरक्षक के के रूप में कार्य करने का प्राप्त हैं जो प्राकृतिक संरक्षक को हैं । वसीयती संरक्षक का संरक्षक अधिकार यथास्थित पिता अथवा माता की मृत्यु के पश्चात् होता है ।

वसीयती संरक्षक के अधिकार पर दो प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये गये हैं

( 1 ) अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम द्वारा लगाये गये प्रतिबन्ध ।

( 2 ) इच्छा – पत्र ( Will ) ( जिसके द्वारा वह नियुक्त हुआ है ) द्वारा लगाये गये प्रतिबन्ध ।

अधिनियम द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों में मुख्य प्रतिबन्ध यह है कि वसीयती संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना अवयस्क की अचल ( Immovable ) सम्पत्ति का सरक्षक के अधिकार पर दूसरा प्रतिबन्ध इच्छा – पत्र द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध होगा । उदाहरण के लिए यदि वसीयती संरक्षक के अधिकार पर यह प्रतिबन्ध लगाया  गया है कि वह अवयस्क की सम्पत्ति का हस्तान्तरण नहीं कर सकता तो इसे वसीयती प्रतिबन्ध – कहा जायेगा ।

पूर्व हिन्दू विधि के अन्तर्गत वसीयती संरक्षक को वे सभी शक्तियाँ प्राप्त थीं जो एक नैसर्गिक संरक्षक को प्रदान की गई थीं । किन्तु इच्छा – पत्र में विहित शर्तों से उसके अधिकार नियन्त्रित किये जा सकते थे । आधुनिक विधि में भी वसीयती संरक्षक को नियन्त्रणों के साथ वही अधिकार प्रदान किये गये हैं जो नैसर्गिक संरक्षक को प्राप्त हैं । इच्छा – पत्र में दी हुई शर्तो से वसीयती संरक्षक बाध्य होता है ।

( 1 ) वसीयती संरक्षक का हटाया जाना — संरक्षक तथा वार्ड्स अधिनियम , 1890 की धारा 39 के अन्तर्गत एक वसीयती संरक्षक को निम्नलिखित आधारों पर न्यायालय द्वारा हटाया जा सकता है ( 1 ) अपने अधिकार का दुरुपयोग करना ।

( 2 ) कर्तव्यों के पालन में लगातार असफल रहना ।

( 3 ) संरक्षित ( Ward ) की उचित देखभाल में प्रमाद तथा दुर्व्यवहार ।

( 4 ) वसीयती संरक्षक का दिवालिया होना ।

( 5 ) न्यायालय के स्थानीय क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत निवास न करना ।

( 6 ) संरक्षित ( Ward ) के हित में विपरीत भावना रखना ।

( 7 ) चारित्रिक दोष के कारण किसी अपराध के लिए दण्डित होना ।

( 8 ) अधिनियम के किन्हीं प्रावधानों का लगातार अवमान ।

( 9 ) कर्त्तव्य के पालन की अयोग्यता ।

धारा 39 में कुछ परन्तुकों ( अपवादों ) का भी वर्णन किया गया है । हटाने के आदेश के विरुद्ध अपील संरक्षक तथा प्रतिपालय , अधिनियम , 1890 की धारा 47 के अन्तर्गत की जा सकती है ।

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