मगध साम्राज्य (magadh samrajya) का उत्थान और विकास

मगध साम्राज्य का उत्थान और विकास

मगध साम्राज्य (magadh samrajya) के उदय तथा विकास के क्या कारण थे 

मगध साम्राज्य (magadh samrajya) में आधुनिक पटना और गया के जनपद आते थे । प्राचीन भारत में इसे एक महत्त्वपूर्ण राज्य का स्थान प्राप्त था । मगध पर आर्यों की संस्कृति का प्रसार देर से हुआ था । पुराणों के अनुसार मगध पर सर्वप्रथम बार्हद्रथ ने शासन किया । उसका पुत्र जरासंघ एक शक्तिशाली शासक था । उनकी राजधानी गिरिब्रज थी । ई ० पू ० छठी शताब्दी में मगध पर हरयंक – कुल का शासन था । महात्मा बुद्ध के समय मगध पर इसी वंश के बिम्बिसार का शासन था । उसके शासनकाल से ही मगध के उत्थान और विकास का युग आरम्भ होता है । मगध के उत्कर्ष में योगदान देने वाले शासकों का वर्णन इस प्रकार से है

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1. बिम्बिसार 544-492 ई ० पू ० ( Bimbisara 544–492B.C . ) — बिम्बिसार 544 ई ० पू ० में मगध का शासक बना था । उस समय उसकी आयु मात्र 15 वर्ष की थी । उसने 492 ई ० पू ० तक शासन किया । बिम्बिसार ने सिंहासन पर बैठने के पश्चात् मगध राज्य की स्थिति को दृढ़ बनाने के उद्देश्य से शक्तिशाली राज्यों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए । उसने सर्वप्रथम कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन कोशल देवी से विवाह किया । उसे दहेज में काशी शहर दिया गया । इस शहर के कारण मगध राज्य की एक लाख रुपये वार्षिक आय बढ़ गई । उसकी दूसरी रानी चेलना वंश से सम्बन्ध रखती थी । उसकी तीसरी रानी केश्मा पंजाब के मद्र राज्य के शासक की पुत्री थी ।

उसकी चौथी रानी विदेह राज्य की राजकुमारी वासवी थी । इन वैवाहिक सम्बन्धों ने मगध सम्राज्य की भव्यता में वृद्धि की । बिम्बिसार एक सफल योद्धा भी था । अंग के शासक ने बिम्बिसार के पिता को हराया था । इस हार का प्रतिशोध लेने के लिए बिम्बिसार ने अंग राज्य पर आक्रमण कर दिया । इस आक्रमण में अंग के शासक ब्रह्मदत्त की कड़ी पराजय हुई । तत्पश्चात् बिम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को यहां का गवर्नर नियुक्त किया । इस विजय से बिम्बिसार की प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुई ।

बिम्बिसार ने अनेक शासकों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध भी स्थापित किए थे । गान्धार के शासक ने उसके दरबार में एक राजदूत भेजा था । अवन्ति शासक चण्डप्रद्योत महासेन भी बिम्बिसार का गहरा मित्र था । एक बार जब वह बीमार हो गया था तो बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उसका उपचार करने भेजा था । बिम्बिसार एक सफल राज्य – प्रबन्धक भी था । उसने एक कुशल शासन – व्यवस्था की स्थापना की थी । प्रजा की भलाई उसका प्रमुख लक्ष्य था । प्रशासन व्यवस्था को उत्तम ढंग से चलाने के उद्देश्य से उसने एक मन्त्रिमण्डल का गठन किया हुआ था ।

यदि कोई भी मन्त्री अपने उत्तरदायित्व में ढील दिखाता तो उसे तुरन्त पदच्युत कर दिया जाता था । अपराधियों को कठोर दण्ड दिए जाते थे । गांवों की शासन व्यवस्था वहां की पंचायतें करती थीं । गांव के मुखिया को ग्रामिक कहा जाता था । बिम्बिसार ने राजगृह को अपनी राजधानी बनाया । इसका निर्माण कार्य महागोबिन्द नामक प्रसिद्ध वास्तुकार ने किया था । यह पांच पर्वतों से घिरी हुई थी , जिसके कारण इस पर आक्रमण करना कोई सरल कार्य नहीं था ।

बिम्बिसार ने यातायात के साधनों और व्यापार को विकसित करने की ओर विशेष ध्यान दिया । बिम्बिसार को बौद्ध ग्रन्थों में बौद्ध धर्म का महान् श्रद्धालु और जैन ग्रन्थों में जैन धर्म का महान् श्रद्धालु बताया गया है । इस का कारण यह है कि बिम्बिसार ने अपने राज्य में सभी धर्मों को पर्याप्त संरक्षण और प्रोत्साहन दिया था । बिम्बिसार के साम्राज्य में 80 हज़ार गांव और उसका विस्तार लगभग 900 मील तक था । इस प्रकार बिम्बिसार ने एक सुदृढ़ मगध साम्राज्य (magadh samrajya) की नींव रखी । अपने शासनकाल के अन्तिम दिनों उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी लिया और यातनाएं देकर मार डाला ।

2. अजातशत्रु 492-460 ई ० पू ० ( Ajatshatru 492-460 B.C . ) — अजातशत्रु 492 ई ० पू ० में मगध क सिंहासन पर बैठा । उसे कृणिक कहकर भी पुकारा जाता था । उसने 460 ई ० पू ० तक शासन किया । उसने मगध राज्य को साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया । अजातशत्रु को सर्वप्रथम कोशल के राजा प्रसेनजित के साथ युद्ध करना पड़ा । इस युद्ध कारण काशी था । यह प्रदेश प्रसेनजित ने अपनी बहन कोशल देवी को दहेज के रूप में मगध के शासक बिम्बिसार को दिया था । बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात् कोशल देवी का भी देहान्त हो गया । प्रसेनजित उन दोनों की मृत्यु का उत्तरदायी अजातशत्रु को मानता था । इसलिए उसने काशी के मगध साम्राज्य (magadh samrajya) को काशी से वार्षिक एक लाख रुपये की आय होती थी ।

इसलिए अजातशत्रु ने काशी पर अधिकार करने के उद्देश्य से कोशल राज्य पर आक्रमण कर दिया । दीर्घकाल के संघर्ष के उपरान्त अन्त में दोनों शासकों के मध्य सन्धि हो गई । इस सन्धि के अनुसार प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वजिरा की शादी अजातशत्रु से कर दी और प्रदेश उसे काशी का प्रदेश लौटा दिया । कोशल राज्य से निपटने के उपरान्त अजातशत्रु ने वज्जि संघ की ओर ध्यान दिया ।

दोनों के मध्य काफ़ी समय से मनमुटाव चल रहा था । दोनों राज्य गंगा नदी पर अधिकार करना चाहते थे , क्योंकि यह नदी व्यापार का एक प्रमुख माध्यम थी । वैशाली वज्जि संघ का प्रमुख था । यहां पर लिच्छवियों का शासन था । अजातशत्रु ने यह बहाना लगाया कि लिच्छवियों ने अजातशत्रु के विरुद्ध कोशल राज्य की सहायता की थी । दोनों के बीच 16 वर्षों तक युद्ध चलता रहा । अजातशत्रु ने अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया तथा गंगा एवं सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक एक नगर की स्थापना की । उसके मन्त्री लिच्छवियों में फूट डलवाने में सफल हुए । फलस्वरूप अजातशत्रु लिच्छवियों को पराजित करने में सफल रहा ।

इस विजय के फलस्वरूप जहां मगध के साम्राज्य में विस्तार हुआ , वहीं अजातशत्रु के गौरव में भी वृद्धि हुई । अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत महासेन ने मगध पर आक्रमण करने की योजना बनाई थी । परन्तु जिस समय चण्डप्रद्योत को अजातशत्रु की लिच्छवियों के विरुद्ध विजय का समाचार मिला तो उसने आक्रमण की योजना त्याग दी । में अजातशत्रु ने भी अपने पिता की भान्ति बौद्ध मत और जैन मत दोनों को संरक्षण प्रदान किया । उसके शासनकाल के आठवें वर्ष महात्मा बुद्ध महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए थे । उनके अवशेषों पर अजातशत्रु ने राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया । अजातशत्रु ने 487 ई ० पू ० में राजगृह में बौद्धों की प्रथम सभा भी बुलाई । 460 ई ० पू ० में अजातशत्रु की मृत्यु हो गई । माना जाता है कि उसका भी वध उसके पुत्र ने किया था ।

3. अजातशत्रु के उत्तराधिकारी ( Successors of Ajatshatru ) – अजातशत्रु की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र उदयन मगध के सिंहासन पर बैठा । उसका शासन काल 460-444 ई ० पू ० तक रहा । उसने अपने शासनकाल में पाटलिपुत्र को मगध साम्राज्य (magadh samrajya) की राजधानी बनाया । इसका कारण यह था कि पाटलिपुत्र मगध साम्राज्य के मध्य में स्थित था । उदयन जैन धर्म का अनुयायी था । उसकी मृत्यु अवन्ति के किसी गुप्तचर द्वारा छुरा घोंपने से हुई थी । उसके पश्चात् अनुरुद्ध , मुण्ड और नागदासक नामक शासक मगध के सिंहासन पर बैठे । परन्तु ये सभी शासक अयोग्य निकले ।

4. शिशुनाग वंश ( Shishunaga Dynasty ) – 420 ई ० पू ० में हरयंक वंश के अन्तिम शासक नागदासक की हत्या करके उसके सेनापति शिशुनाग ने मगध में एक नए राजवंश की स्थापना की । उसने वैशाली को कुछ समय के लिए मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया ।उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत को पराजित करना था । इससे मगध साम्राज्य की पश्चिमी सीमा मालवा तक जा पहुंची । वत्स अवन्ति के अधीन था , अतैव वह भी शिशुनाग के अधिकार में आ गया । आर्थिक दृष्टि से भी यह विजय अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुई ।

पाटलिपुत्र को पश्चिमी विश्व के साथ व्यापार का एक मार्ग प्राप्त हो गया । कोशल राज्य के क्षेत्र मगध के अधीन • आते ही मगध साम्राज्य (magadh samrajya) का विस्तार दूर – दूर तक हो गया । 394 ई ० पू ० शिशुनाग की मृत्यु हो गई । शिशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कालासोक मगध का शासक बना । उसने 387 ई ० पू ० को वैशाली में बौद्ध भिक्षुओं की दूसरी सभा आयोजित की । 364 ई ० पू ० में महापद्मनन्द ने कालासोक की हत्या कर दी और स्वयं सिंहासन पर बैठ गया ।

5. नन्द वंश ( Nanda Dynasty ) — नन्द वंश की स्थापना महापद्मनन्द ने 364 ई ० पू ० में की थी । वह निम्न कुल से सम्बन्धित था । परन्तु वह बड़ा शक्तिशाली शासक प्रमाणित हुआ । उसकी सैनिक – शक्ति बहुत विशाल और दृढ़ थी । इसी कारण उसे उग्रसेन भी कहा जाता था । उसने अपने शासनकाल के दौरान ईक्षवाकु , पांचाल , कुरु , शूरसेन , मिथिला और कलिंग इत्यादि शासकों को पराजित किया । परिणामस्वरूप उसे उत्तरी भारत का महान् सम्राट् कहा जाता है । महापद्मनन्द को क्षत्रियों का हंता भी कहा जाता है ।

उसके शासनकाल में मगध भारत का सर्वशक्तिशाली राज्य बन गया । महापद्मनन्द की मृत्यु के पश्चात् उसके 8 पुत्र मगध के सिंहासन पर बैठे । उन्होंने कुल 22 वर्षों तक शासन किया । नन्द वंश का अन्तिम शासक धनानन्द था । उसके पास अपार धन था और उसकी सेना में 2 लाख पैदल सैनिक , 60 हज़ार घुड़सवार और 6 हज़ार हाथी थे ।

इसी विशाल सेना के कारण सिकन्दर के सैनिकों को मगध पर आक्रमण करने का साहस न हुआ । परन्तु धनानन्द बहुत लोभी था । उसने ग़ैर – कानूनी ढंगों से धन एकत्रित करने में कोई कसर न उठा रखी थी । परिणामस्वरूप वह अपनी प्रजा में बहुत अप्रिय था । 321 ई ० पू ० में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के सहयोग से उसका वध कर दिया । परिणामस्वरूप मगध पर नन्द वंश का शासन समाप्त हो गया और मौर्य वंश का सूर्य उदित हुआ ।

मगध साम्राज्य(magadh samrajya) के विस्तार के कारण – Reasons for the Expansion of Magadha Empire

मगध साम्राज्य के विस्तार के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे । इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है 

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1. भौगोलिक स्थिति ( Geographical Position ) — मगध साम्राज्य (magadh samrajya) के विस्तार में इसकी भौगोलिक स्थिति पर्याप्त सहायक प्रमाणित हुई । मगध के उत्तर की ओर गंगा , दक्षिण की ओर विंध्याचल पर्वत , पूर्व की ओर सोन तथा पश्चिम की ओर चम्पा नदियां बहती थीं । इस प्रकार मगध साम्राज्य चारों ओर से सुरक्षित था । इसकी दोनों राजधानियां राजगृह और पाटलिपुत्र भी भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर स्थित थीं । पहली राजधानी राजगृह पांच पर्वतों की एक श्रृंखला द्वारा घिरी हुई थी । क्योंकि उस समय तोपों का आविष्कार नहीं हुआ था 

इसलिए इस पर विजय प्राप्त करना लगभग असम्भव था । पांचवीं शताब्दी में मगध के शासकों ने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया । यह मगध के केन्द्र तथा गंगा – गण्डक और सोन नदियों के संगम पर स्थित थी । इससे थोड़ी दूरी पर सरयू नदी गंगा में मिलती थी । परिणामस्वरूप नदियों से घिरे होने के कारण पाटलिपुत्र अत्यन्त सुरक्षित था ।

2. लोहे के विशाल भण्डार ( Rich Iron Ore ) — मगध के विस्तार में लोहे के विशाल भण्डारों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । इन लोहे के भण्डारों के कारण ही मगध के शासक उन्नत किस्म शस्त्र बना पाए । क्योंकि मगध साम्राज्य के विरोधियों के पास लोहे के भण्डारों का अभाव था इस कारण उनके लिए ऐसे शस्त्रों का निर्माण करना असम्भव था । इन शस्त्रों के परिणामस्वरूप मगध के शासक अपने विरोधियों को सरलता से पराजित कर पाए ।

छठी शताब्दी ई ० पू ० के लगभग उज्जैन जोकि अवन्ति की राजधानी था , में लोहे को ढालने का कार्य आरम्भ हो चुका था । परिणामस्वरूप वहां के लोहार बढ़िया किस्म के शस्त्र बनाने में सफल हुए । इसी कारण उत्तरी भारत में अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने के लिए मगध और अवन्ति के शासकों में बहुत कठोर संघर्ष चलता रहा । अवन्ति पर अधिकार करने के लिए मगध को लगभग सौ वर्ष लगे ।

3. विशाल सेना ( Vast Army ) — मगध शासकों के पास विशाल और कुशल सेना थी । नन्द शासकों के पास 2 लाख पैदल सैनिक , 60 हज़ार घुड़सवार और 6 हज़ार हाथी । मगध शासकों ने प्रथम बार अपने विरोधियों के विरुद्ध बड़े स्तर पर हाथियों का प्रयोग किया । इन हाथियों का प्रयोग दृढ़ दुर्गों को तोड़ने व यातायात के साधनों के रूप में किया जाता था । इस शक्तिशाली सेना के फलस्वरूप ही मगध के शासक अपने विरोधियों को सफलतापूर्वक पराजित करने में सफल हुए ।

4. अच्छी आर्थिक स्थिति ( Good Economic Condition ) – मगध साम्राज्य (magadh samrajya) आर्थिक पक्ष बहुत समृद्ध था । यहां की भूमि बहुत उपजाऊ थी । सिंचाई साधनों की कोई कमी न थी । परिणामस्वरूप फसलों की भरपूर पैदावार होती थी । यह क्षेत्र चावल की पैदावार के लिए सुविख्यात था । यहां का वाणिज्य – व्यापार भी बहुत विकसित था । इस आर्थिक समृद्धि के फलस्वरूप ही मगध शासक एक विशाल सेना रखने और मगध साम्राज्य का विस्तार करने में सफल हुए ।

5. अन्य कारण ( Other Causes ) — ऊपरलिखित कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी मगध साम्राज्य (magadh samrajya) के विस्तार के लिए सहायक सिद्ध हुए । मगध पर बिम्बिसार , अजातशत्रु , शिशुनाग और महापद्मनन्द जैसे वीर और शक्तिशाली शासकों ने शासन किया । मगध साम्राज्य के विस्तार के लिए उन्होंने प्रत्येक सम्भव प्रयास किया । इसके अतिरिक्त मगध में जाति प्रथा इतनी कठोर नहीं थी जितनी कि उस समय भारत के अन्य राज्यों में थी । लोगों के परस्पर मेल – मिलाप और एकता के कारण मगध के विरोधियों को सरलतापूर्वक पराजित किया जा सका ।

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