दत्तक ग्रहण के क्या परिणाम हैं ?

दत्तक ग्रहण के क्या परिणाम हैं ? What are the effect of Adoption ?

दत्तक ग्रहण के परिणाम ( Effect of Adoption ) – प्राचीन विधि के अनुसार दत्तक पुत्र अपने नैसर्गिक परिवार से स्थानान्तरित होकर दत्तक ग्रहीता परिवार में आ जाता है .वह दत्तक ग्रहीता परिवार के सदस्यों का सपिण्ड हो जाता है और उसकी दत्तक प्रहीता माता के पूर्वज उसके मातृ पक्षीय पुरखे होते हैं । प्रिची कौंसिल ने प्रताप सिंह बनाम अमर सिंह के मामले में यह मत व्यक्त किया है कि “ दत्तक पुत्र की स्थिति दुत्तक ग्रहीता के औरस पुत्र की होती है । वह दत्तक ग्रहीता की वंश परम्परा को औरस पुत्र की भाँति ही चलाता है ।

” वह अपने दत्तक पिता की वंशावली को चलाने वाला ठीक वैसा ही है जैसे औरस पुत्र होता है और जहाँ तक वंशावली चलाने का सम्बन्ध है , दत्तक ग्रहण का मूल उसी प्रभाव में होता है । हिन्दू दत्तक तथा भरण – पोषण अधिनियम , 1956 की धारा 12 के अन्तर्गत दत्तक ग्रहण के परिणाम इस प्रकार दिये गये हैं ” दत्तक पुत्र के विषय में यह समझा जायेगा कि दत्तक ग्रहण की तारीख से वह अपने दत्तक ग्रहीता पिता या माता का सभी प्रयोजनों के लिए पुत्र हैं तथा यह भी समझा जायेगा कि उस बालक के अपने जन्म के परिवार के साथ समस्त सम्बन्ध उस तारीख से विच्छिन्न हो गये हैं और उसका स्थान उस सम्बन्धों ने ले लिया है जो दत्तक ग्रहीता परिवार में दत्तक ग्रहण के कारण उत्पन्न हुए हैं ।

दत्तक ग्रहण

परन्तु

( अ ) वह बालक ( दत्तक युग ) किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकेगा जिससे यदि वह अपने जन्म के परिवार में होता है तो विवाह न कर सकता । (

ब ) जो कोई सम्पत्ति दत्तक पुत्र में दत्तक ग्रहण के पूर्व निहित की गई थी , अपने जन्म के परिवार से सम्बन्धियों के कारण घोषित करने के आधार सहित ऐसे आधारों के अधीन रहते हुए यदि कोई हो जो कि ऐसे सम्पत्ति के स्वामित्व से सम्बन्ध है उसमें निहित बनी रहेगी ।

 

( स ) जो सम्पदा किसी व्यक्ति में दत्तक ग्रहण से पूर्व निहित हो गई है , दत्तक पुत्र उस सम्पदा से उसको अनहित कर सकेगा । 

इस प्रकार वर्तमान विधि के अन्तर्गत दत्तक ग्रहण में पुत्र के पिता के साथ भूतकाल से सम्बन्धित हो जाने की प्राचीन विधि का नियम समाप्त हो गया है । इस नियम के अनौचित्व का उल्लेख उच्चतम न्यायालय ने श्री निवास बनाम नारायण वाले वाद में किया गया था । वस्तुतः इस वर्तमान अधिनियम के पास हो जाने के बाद दत्तक पुत्र के पिता के साथ भूतकाल से सम्बन्धित हो जाने की आवश्यकता समाप्त हो गई ।

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