फाहियान कौन था ?
फाहियान और उसका भारत वृत्तान्त | Phaahiyaan Aur Usaka Bhaarat Vrttaant-
फाहियान कौन था ?
फाहियान एक चीनी यात्री था । वह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में बौद्ध साहित्य का अध्ययन तथा बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने भारत आया था । फाहियान का जन्म चीन के वन्यंग नामक स्थान पर हुआ था । उसे बचपन से ही बौद्ध धर्म से विशेष लगाव था । उसने बौद्ध धर्म के गहन अध्ययन के लिए भारत की यात्रा का निर्णय किया । परिणामस्वरूप फाहियान ने 399 ई ० में भारत की ओर प्रस्थान किया । वह 405 ई ० में भारत पहुंचा ।
यहां वह 411 ई ० तक रहा । उसने यहां प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा की । वह पाटलिपुत्र में तीन वर्ष तक रहा । यहां से वह लंका , जावा , सुमात्रा आदि से होता हुआ 414 ई ० में स्वदेश लौट गया । फाहियान ने अपने लेखों में अधिकतर बातें बौद्ध धर्म के विषय में ही लिखी हैं । आश्चर्य की बात तो यह है कि उसने अपने समस्त वर्णन में कहीं भी तत्कालीन राजा के नाम का उल्लेख नहीं किया । परन्तु उसके लेखों के आलोचनात्मक चन्द्रगुप्त • विक्रमादित्य के समय के भारत के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है । अपनी यात्रा का आंखों देखा हाल उसने अपनी पुस्तक ” फो – को- की ” में वर्णित किया है । फाहियान द्वारा तत्कालीन भारत के विषय में किया गया वर्णन निम्नलिखित दिया गया है
1. पाटलिपुत्र के विषय में -About Pataliputra – फाहियान पाटलिपुत्र में तीन वर्ष तक रहा । अतः उसने अपने लेखों में पाटलिपुत्र के विषय में विस्तृत वर्णन किया है । उन दिनों पाटलिपुत्र गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी । उसने इस नगर की निम्नलिखित विशेषताओं पर प्रकाश डाला है 1. अशोक का आकर्षक महल ( Attractive Palace of Ashoka ) — फाहियान के अनुसार नगर के मध्य में स्थित अशोक के राजमहल की शोभा अद्वितीय थी । उस महल की बनावट देखने वालों को चकाचौंध कर देती थी । उसके अपने शब्दों में , ” नगर के राजमहल के विभिन्न भागों को जो अब तक स्थित हैं , उसने ( अशोक ) देवताओं द्वारा बनवाया था । देवताओं ने ही पत्थरों के ढेर एकत्रित किए , उसकी दीवारों तथा द्वार का निर्माण किया और उस पर पत्थर की नक्काशी का अति सुन्दर कार्य किया ।
2. दो बौद्ध विहार – Two Monastaries – फाहियान लिखता है कि नगर में दो बौद्ध विहार थे । इन विहारों में क्रमश : बौद्ध धर्म की हीनयान तथा महायान शाखाओं के भिक्षु निवास करते थे । ये भिक्षु अत्यन्त विद्वान् थे इनसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर – दूर से लोग आते थे ।
3. समृद्ध नगर -Prosperous City — फाहियान के अनुसार उस समय पाटलिपुत्र धन – धान्य से भरपूर था । यहां के अधिकांश निवासी धनी होने के साथ – साथ दानी तथा दयावान् भी थे । उनकी सहायता से नगर में कई अस्पताल चलते थे , जहां निर्धनों को मुफ्त दवाइयां , भोजन तथा वस्त्र आदि मिलते थे ।
4. भव्य बौद्ध जुलूस -Grand Buddhist Procession — फाहियान लिखता है कि नगर में प्रति वर्ष दूसरे माह की आठवीं तिथि को बुद्ध की मूर्तियों का एक भारी जुलूस निकलता था । बौद्ध अनुयायियों के अतिरिक्त उस जुलूस में ब्राह्मण भी सम्मिलित होते थे । यह जुलूस 20 गाड़ियां सजाकर निकाला जाता था ।
5. विश्राम गृह -Rest House — फाहियान के अनुसार यहां पर यात्रियों को अनेक प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध थीं । यात्रियों की सुविधा के लिए अनेक विश्राम गृह तथा सराएं बनी हुई थीं ।
राजनीतिक दशा के विषय में | About Political Condition
1. नगर प्रशासन ( Town Administration ) – फाहियान के अनुसार उस समय की सरकार काफ़ी नरम थी । लोगों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया जाता था । सरकार लोगों के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती थी । लोगों को घूमने – फिरने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी । फाहियान के शब्दों में , ” लोग जहां कहीं भी जाना चाहते हैं , चले जाते हैं , जहां कहीं ठहरना चाहते हैं , ठहर जाते हैं । “
2. सुरक्षित राजपथ ( Safe Roads ) — फाहियान लिखता है कि उस समय राजपथ पूर्णतया सुरक्षित थे । चोरों और डाकुओं का भय नहीं था । फाहियान ने स्वयं सारे देश का भ्रमण किया । उसे मार्ग में कहीं भी किसी ने लूटने का प्रयास नहीं किया । इसके विपरीत लगभग 200 वर्ष पश्चात् आए एक अन्य चीनी यात्री ह्यूनसांग को तीन बार लूटा गया ।
3. हल्के दण्ड ( Light Punishments ) — उस समय का दण्ड विधान मौर्यकालीन दण्ड विधान की अपेक्षा अधिक नरम था । फाहियान लिखता है कि मृत्यु दण्ड बिल्कुल नहीं दिया जाता था । देश – द्रोहियों अथवा बार – बार अपराध करने वालों के हाथ – पांव काट दिए जाते थे । साधारण अपराधों के लिए केवल जुर्माना ही किया जाता था ।
4. आय के साधन ( Sources of Income ) – राज्य की आय का मुख्य साधन भूमिकर था । यह नकद या . उपज के रूप में लिया जाता था । इसके अतिरिक्त जनता से अनेक प्रकार के अन्य कर भी वसूल किए जाते थे । कर साधारण होने के कारण अधिकारियों को इन्हें वसूल करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी ।
5. सरकारी कर्मचारी -Government Officials — सभी सरकारी कर्मचारी नम्र तथा ईमानदार थे । उन्हें नकद वेतन मिलता था । भ्रष्टाचार आदि का प्रशासन में कोई स्थान न था ।
सामाजिक तथा आर्थिक दशा के विषय में | About Social and Economic Condition
1. शाकाहारी लोग -Vegetarian People — फाहियान के अनुसार , उस समय अधिकतर लोग खान – पान में शाकाहारी थे । उनका जीवन पवित्र तथा नैतिकता से पूर्ण होता था । फाहियान के अपने शब्दों में , ” पूरे देश में लोग किसी जीव को नहीं मारते थे , न ही वे शराब तथा अन्य मादक द्रव्य पीते थे , न ही वे लहसुन तथा प्याज खाते थे । वे सूअर तथा मुर्गी नहीं पालते थे । पशु नहीं बेचे जाते थे , बाजारों में कसाइयों की तथा शराब की दुकानें नहीं थीं ।
2. छुआछूत -Untouchability —उसने वर्णन किया है कि चाण्डाल लोग पवित्र तथा सादा जीवन नहीं व्यतीत करते थे । वे मांस बेचते और मदिरा पीते थे । उन्हें शहर से बाहर रहना पड़ता था । लोग उनकी परछाई से दूर भागते थे । वे लकड़ियां बजाते हुए नगर में प्रवेश करते थे ।
3. उन्नत आर्थिक जीवन -Developed Economic Life– फाहियान के अनुसार उस समय लोगों का आर्थिक जीवन बहुत उन्नत था । लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । छोटी वस्तुओं के क्रय – विक्रय में कौड़ियों का प्रयोग किया जाता था । परन्तु विनिमयों में स्वर्ण सिक्कों का उपयोग किया जाता था । आन्तरिक तथा विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था में था । भड़ौच , सुपारा , कैम्बे तथा ताम्रलिप्ति इस समय के प्रसिद्ध बन्दरगाह थे ।
धार्मिक दशा के विषय में | About Religious Condition
1. बौद्ध धर्म के विषय में -About Buddhism – फाहियान स्वयं बौद्ध था । अतः बौद्ध धर्म के विषय में उसका अधिक वर्णन करना स्वाभाविक ही था । वह लिखता है कि उस समय पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त , पंजाब , मथुरा और बंगाल में बौद्ध धर्म बहुत जोरों पर था । उसने मथुरा में 20 मठ देखे । उन मठों में लगभग 3,000 भिक्षु निवास करते थे । उसके अनुसार बौद्ध भिक्षुओं का आचरण श्रेष्ठ था । लोगों में उनका सम्मान था । उन्हें राज्य की तरफ से भी पर्याप्त सहायता प्राप्त होती थी ।