हूण कौन थे , हूण आक्रमण, हूणों के भारत पर आक्रमण

हूण कौन थे ? | Hoon Kaun The ?

हूण -The Hunas –हूण मध्य एशिया की रहने वाली एक असभ्य , लड़ाकू तथा निर्दयी जाति थी । हूण लोग चीन देश की सी मा पर रहते थे । इन लोगों को बंजर भूमि , प्रतिकूल जलवायु , जनसंख्या में वृद्धि तथा चीनी साम्राज्य के विस्तार के कारण अपने देश को छोड़ना पड़ा । ये लोग अपने देश को छोड़ते समय दो भागों में विभाजित हो गए । हूणों का एक भाग यूरोप की ओर रवाना हुआ और वहां के पूर्वी तथा मध्य भागों में बस गया । ये ‘ काले हण ‘ के नाम  से पुकारे जाने लगे । ऐटिला इनका महान् नेता था । हूणों का दूसरा भाग फारस तथा अफ़गानिस्तान से होता हुआ भारत की ओर बढ़ा । इन हूणों को ‘ सफ़ेद हूण ‘ कहा गया है । चीनी स्रोतों से हमें हूणों की शारीरिक अवस्था की काफ़ी जानकारी प्राप्त होती है ।
 

उनका चेहरा डरावना , कन्धे चौड़े तथा नाक चपटी थी । उनकी आंखें काली , छोटी तथा अन्दर की ओर धंसी हुई थीं । हूण जाति के लोग बड़े ही अत्याचारी थे । लोगों की हत्या करके उन्हें बड़ा आनन्द प्राप्त होता था । किसी भी देश को विजय करने के पश्चात् वे वहांके मन्दिरों , मठों तथा अन्य स्मारकों को नष्ट – भ्रष्ट कर देते थे । वास्तव में इन लोगों का उद्देश्य लूटमार करना , लोगों की हत्या करना तथा सभ्यता को नष्ट ही करना था । यही कारण है कि हूणों को ‘ खुदा का कहर ‘ कहकर पुकारा गया है । भारत में हूणों के इतिहास का वर्णन इस प्रकार से है वे

1. हूणों के भारत पर आक्रमण -Huna’s Invasions on India  – पांचवीं शताब्दी के मध्य एशिया में हूणों ने ऑक्सस की घाटी में अपनी स्थिति काफ़ी मज़बूत बना ली थी । उन्होंने ईरान के ससानियन राजा फिरोज को परास्त करके उसका वध कर दिया । इसके पश्चात् ये लोग अफ़गानिस्तान और उत्तर – पश्चिम भारत की ओर बढ़े । हूणों ने कुमारगुप्त के शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया । 455 ई ० में लड़े गए इस युद्ध में सम्राट् कुमारगुप्त के पुत्र युवराज स्कन्दगुप्त ने इनका डटकर सामना किया और उन्हें बुरी तरह परास्त किया । भितरी स्तम्भ लेख के अनुसार जब स्कन्दगुप्त हूणों से टकराया तब उसने अपनी भुजाओं से पृथ्वी हिला दी । अपनी पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए हूणों ने 467 ई ० में दूसरी बार आक्रमण किया । इस बार स्कन्दगुप्त का शासन था । स्कन्दगुप्त ने हूणों को पुनः पराजित किया ।

परिणामस्वरूप अगले 50 वर्षों तक हूणों ने भारत की ओर मुंह नहीं किया । इसलिए स्कन्दगुप्त को गुप्त साम्राज्य का महान् रक्षक कहा जाता है । प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर आर ० सी ० मजूमदार के अनुसार , ” यह एक महान् उपलब्धि थी जिसके लिए स्कन्दगुप्त को भारत के रक्षक के रूप में याद किया जाएगा । ‘ ‘ परन्तु स्कन्दगुप्त की मृत्यु के बाद कोई ऐसा योग्य राजा न था जो कि हूणों को रोक पाता । परिणाम यह हुआ कि छठी शताब्दी के आरम्भ तक उन्होंने उत्तर – पश्चिमी भारत के एक बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार जमा लिया । सिक्कों तथा अभिलेखों से पता चलता है कि हूणों के दो महान् शासक थे – तोरमाण तथा मिहिरकुल ।

2. तोरमाण -Tormana  – तोरमाण श्वेत हूणों का एक सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था । उसका स्वभाव क्रूर तथा निर्दयी था । वह हूणों की भारत में हुई पराजयों का प्रतिशोध लेना चाहता था । स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी बहुत दुर्बल निकले । अतः तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने भारत पर निरन्तर आक्रमण करने आरम्भ कर दिये । ये आक्रमण 500 ई ० के लगभग किए गए । शीघ्र ही तोरमाण ने पंजाब , राजस्थान , कश्मीर और उत्तर प्रदेश कुछ भागों पर अधिकार कर लिया । 510 ई ० में उसने गुप्त शासक भानुगुप्त के सेनापति गोपराज को एरण नामक स्थान पर हराया । फलस्वरूप हूणों का मालव ा पर भी अधिकार हो गया । तोरमाण ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा शाकल अथवा स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया । उसने हिन्दू धर्म को अपना लिया । वह सूर्य और शिव की उपासना करता था । 515 ई ० में उसकी मृत्यु हो गई ।
हूण कौन थे , हूण आक्रमण, हूणों के भारत पर आक्रमण

3. मिहिरकुल -Mihirkula – तोरमाण की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मिहिरकुल अथवा मिहिरगुल 515 ई ० में सिंहासन पर बैठा । ह्यून – त्सांग के अनुसार मिहिरकुल ने भी शाकल अथवा स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया था । राजतरंगिणी में मिहिरकुल को एक शक्तिशाली राजा बताया गया है । इसमें कहा गया है कि गन्धार और कश्मीर उसके राज्य के अंग थे । कुछ ही समय में उसने दक्षिणी भारत तथा लंका पर भी विजय प्राप्त कर ली । ग्वालियर से प्राप्त एक अभिलेख से पता चलता है कि उसका प्रभुत्व ग्वालियर तक फैला हुआ था । मिहिरकुल ने लगभग 30 वर्ष तक राज्य किया । मिहिरकुल बड़ा ही अत्याचारी राजा था । उसे ‘ भारतीय ऐटिला ‘ अथवा ‘ भारतीय नीरो ‘ के नाम से भी पुकारा गया है ।

मिहिरकुल के समय की सबसे बड़ी घटना उत्तरी भारत के राजाओं के साथ उसका युद्ध था । मगध के गह बालादित्य तथा मध्य राजा यशोधर्मन ने मिहिरकुल के विरुद्ध उत्तरी भारत के राजाओं का एक संघ बनाया था । 528 ई ० के लगभग मिहिरकुल तथा उत्तरी भारत के राजाओं के बीच युद्ध हुआ । इस युद्ध में मिहिरकुल पकड़ा गया । बालादित्य उसका वध करना चाहता था , परन्तु उसने अपनी मां के कहने पर मिहिरकुल को छोड़ दिया । मिहिरकुल ने कश्मीर के राजा की शरण ली । कुछ समय के पश्चात राजा का वध करके वह स्वयं सिंहासन पर बैठ गया । इसके पश्चात् उसने गान्धार को भी विजय कर लिया ।

मिहिरकुल सम्भवतः शिव का उपासक था । ग्वालियर के शिलालेख में बताया गया है कि मिहिरकुल ने सूर्य का मन्दिर बनवाया था । इससे सिद्ध होता है कि वह सूर्य का उपासक भी था बौद्ध धर्म के अनुयायियों के साथ उसका व्यवहार बहुत खराब था । उसने बौद्ध धर्म के अनेक मठों तथा स्तूपों को नष्ट करवा दिया । मिहिरकुल की मृत्यु 542 ई ० में हुई थी । 

4. हूणों का अन्त -The end of the Hunas  – मिहिरकुल की मृत्यु के साथ ही भारत में हूणों का प्रभुत्व तथा साम्राज्य समाप्त हो गया था , परन्तु सातवीं शताब्दी तक छोटे – छोटे हूण राजा उत्तरी – पश्चिमी भारत तथा पंजाब के कुछ भागों पर राज्य करते रहे । धीरे – धीरे यह जाति राजपूतों में मिल गई और ग्यारहवीं शताब्दी तक वे पूरी तरह हिन्दू बन गए । इस प्रकार भारत में हूणों का पूर्णतया अन्त हो गया ।

हूण आक्रमण | The Hunas Invasions 

 हूणों के आक्रमणों के प्रभाव – Effects of Huna’s Invasions-

निःसन्देह हूणों ने भारत पर बहुत अधिक समय तक राज्य नहीं किया । वास्तव में भारत का थोड़ा – सा ही भाग उनके अधीन था , परन्तु फिर भी भारत की राजनीतिक , सामाजिक , धार्मिक तथा आर्थिक अवस्था पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा । हूणों के आक्रमणों के मुख्य प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है

1. सामाजिक प्रभाव – Social Effects – हूण आक्रमणों का देश की सामाजिक अवस्था पर भी काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ा । जब हूणों की राजनीतिक शक्ति समाप्त हो गई तो वे भारत में ही बस गए । शीघ्र ही उन्होंने भारतीय स्त्रियों से विवाह कर लिए और हिन्दू समाज में उन्होंने अपनी विभिन्न जातियां बना लीं । इस प्रकार भारत में कई नई जातियों तथा उप- जातियों का जन्म हुआ । इसके अतिरिक्त भारत में आने वाले उच्च जाति के लोग हूणों के साथ मेल – मिलाप बढ़ाकर अपनी जाति की पवित्रता को समाप्त नहीं करना चाहते थे । इसलिए उन्होंने जाति – पाति के नियमों का और भी दृढ़ता से पालन करना आरम्भ कर दिया ।

2. नैतिक प्रभाव -Moral Effects – हैवेल का कहना है कि हूणों के साथ रक्त सम्बन्ध स्थापित होने से भारतीयों के नैतिक सिद्धान्तों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा । भारतीयों का नैतिक पतन होने लगा और उनमें कई प्रकार के अन्धविश्वासों ने जन्म ले लिया ।

3. धार्मिक प्रभाव -Religious Effects – हूण जब भारत में बस गए तो वे हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित हुए । हूणों के सिक्कों से पता चलता है कि तोरमाण विष्णु का तथा मिहिरकुल शिव तथा सूर्य का उपासक था । परन्तु हूण बौद्ध धर्म से घृणा करते थे , इसलिए उन्होंने इस धर्म को गहरा आघात पहुंचाया । उन्होंने बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया तथा उनके स्तूपों तथा विहारों को नष्ट कर दिया । हूणों की यह क्रूरता भारत में बौद्ध धर्म की अवनति का एक प्रमुख कारण बनी ।

4. आर्थिक प्रभाव -Economic Effects  – गुप्त काल आर्थिक पक्ष से बहुत खुशहाल था । इस काल में भारतीय व्यापार तथा वाणिज्य अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंच गया था । परिणामस्वरूप भारत में धन की कोई कमी न थी । परन्तु हूणों के लगातार आक्रमणों से भारत में अराजकता फैल गई । इस कारण भारतीय कृषि , उद्योग तथा व्यापार को भारी नुक्सान पहुंचा । परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया और तीव्र हो गई ।

5. राजनीतिक प्रभाव -Political Effects – हूणों के आक्रमणों का एक बहुत बड़ा प्रभाव यह था कि इन आक्रमणों ने गुप्त साम्राज्य को समाप्त कर दिया । स्कन्दगुप्त के अधिकारी बड़े अयोग्य थे , इसलिए वे हूणों का मुकाबला न कर पाए । परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य छिन्न – भिन्न हो गया , भारत की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई और देश छोटे – छोटे राज्यों में बंट गया । हूण जाति के लोग बड़े अत्याचारी थे तथा तानाशाही शासन प्रणाली में विश्वास रखने वाले थे । इसका प्रभाव यह हुआ कि भारतीय शासक हूणों की भान्ति निरंकुश होने का प्रयत्न करने लगे । इसके अतिरिक्त हूणों ने बहुत से ऐतिहासिक भवन नष्ट कर डाले तथा कितनी ही अमूल्य पुस्तकों को जलाकर राख कर दिया । इस प्रकार उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक स्रोतों को नष्ट कर दिया जो कि उस समय का • इतिहास जानने के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हो सकते थे ।

 ऐटिला इनका महान् नेता था । हूणों का दूसरा भाग फारस तथा अफ़गानिस्तान से होता हुआ भारत की ओर बढ़ा । इन हूणों को ‘ सफ़ेद हूण ‘ कहा गया है । चीनी स्रोतों से हमें हूणों की शारीरिक अवस्था की काफ़ी जानकारी प्राप्त होती है । उनका चेहरा डरावना , कन्धे चौड़े तथा नाक चपटी थी । उनकी आंखें काली , छोटी तथा अन्दर की ओर धंसी हुई थीं । हूण जाति के लोग बड़े ही अत्याचारी थे । लोगों की हत्या करके उन्हें बड़ा आनन्द प्राप्त होता था । किसी भी देश को विजय करने के पश्चात् वे वहांके मन्दिरों , मठों तथा अन्य स्मारकों को नष्ट – भ्रष्ट कर देते थे । वास्तव में इन लोगों का उद्देश्य लूटमार करना , लोगों की हत्या करना तथा सभ्यता को नष्ट ही करना था । यही कारण है कि हूणों को ‘ खुदा का कहर ‘ कहकर पुकारा गया है । भारत में हूणों के इतिहास का वर्णन इस प्रकार से है वे

हूणों के भारत पर आक्रमण -Huna’s Invasions on India

पांचवीं शताब्दी के मध्य एशिया में हूणों ने ऑक्सस की घाटी में अपनी स्थिति काफ़ी मज़बूत बना ली थी । उन्होंने ईरान के ससानियन राजा फिरोज को परास्त करके उसका वध कर दिया । इसके पश्चात् ये लोग अफ़गानिस्तान और उत्तर – पश्चिम भारत की ओर बढ़े । हूणों ने कुमारगुप्त के शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया ।

455 ई ० में लड़े गए इस युद्ध में सम्राट् कुमारगुप्त के पुत्र युवराज स्कन्दगुप्त ने इनका डटकर सामना किया और उन्हें बुरी तरह परास्त किया । भितरी स्तम्भ लेख के अनुसार जब स्कन्दगुप्त हूणों से टकराया तब उसने अपनी भुजाओं से पृथ्वी हिला दी । अपनी पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए हूणों ने 467 ई ० में दूसरी बार आक्रमण किया । इस बार स्कन्दगुप्त का शासन था । स्कन्दगुप्त ने हूणों को पुनः पराजित किया । परिणामस्वरूप अगले 50 वर्षों तक हूणों ने भारत की ओर मुंह नहीं किया । इसलिए स्कन्दगुप्त को गुप्त साम्राज्य का महान् रक्षक कहा जाता है ।

हूण कौन थे , हूण आक्रमण, हूणों के भारत पर आक्रमण

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर आर ० सी ० मजूमदार के अनुसार , ” यह एक महान् उपलब्धि थी जिसके लिए स्कन्दगुप्त को भारत के रक्षक के रूप में याद किया जाएगा । ‘ ‘ परन्तु स्कन्दगुप्त की मृत्यु के बाद कोई ऐसा योग्य राजा न था जो कि हूणों को रोक पाता । परिणाम यह हुआ कि छठी शताब्दी के आरम्भ तक उन्होंने उत्तर – पश्चिमी भारत के एक बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार जमा लिया । सिक्कों तथा अभिलेखों से पता चलता है कि हूणों के दो महान् शासक थे – तोरमाण तथा मिहिरकुल ।

2. तोरमाण -Tormana- तोरमाण श्वेत हूणों का एक सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक था । उसका स्वभाव क्रूर तथा निर्दयी था । वह हूणों की भारत में हुई पराजयों का प्रतिशोध लेना चाहता था । स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी बहुत दुर्बल निकले । अतः तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने भारत पर निरन्तर आक्रमण करने आरम्भ कर दिये । ये आक्रमण 500 ई ० के लगभग किए गए । शीघ्र ही तोरमाण ने पंजाब , राजस्थान , कश्मीर और उत्तर प्रदेश कुछ भागों पर अधिकार कर लिया । 510 ई ० में उसने गुप्त शासक भानुगुप्त के सेनापति गोपराज को एरण नामक स्थान पर हराया । फलस्वरूप हूणों का मालव ा पर भी अधिकार हो गया । तोरमाण ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा शाकल अथवा स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया । उसने हिन्दू धर्म को अपना लिया । वह सूर्य और शिव की उपासना करता था । 515 ई ० में उसकी मृत्यु हो गई ।

3. मिहिरकुल -Mihirkula – तोरमाण की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मिहिरकुल अथवा मिहिरगुल 515 ई ० में सिंहासन पर बैठा । ह्यून – त्सांग के अनुसार मिहिरकुल ने भी शाकल अथवा स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया था । राजतरंगिणी में मिहिरकुल को एक शक्तिशाली राजा बताया गया है । इसमें कहा गया है कि गन्धार और कश्मीर उसके राज्य के अंग थे । कुछ ही समय में उसने दक्षिणी भारत तथा लंका पर भी विजय प्राप्त कर ली । ग्वालियर से प्राप्त एक अभिलेख से पता चलता है कि उसका प्रभुत्व ग्वालियर तक फैला हुआ था । मिहिरकुल ने लगभग 30 वर्ष तक राज्य किया । मिहिरकुल बड़ा ही अत्याचारी राजा था । उसे ‘ भारतीय ऐटिला ‘ अथवा ‘ भारतीय नीरो ‘ के नाम से भी पुकारा गया है ।

मिहिरकुल के समय की सबसे बड़ी घटना उत्तरी भारत के राजाओं के साथ उसका युद्ध था । मगध के गह बालादित्य तथा मध्य राजा यशोधर्मन ने मिहिरकुल के विरुद्ध उत्तरी भारत के राजाओं का एक संघ बनाया था । 528 ई ० के लगभग मिहिरकुल तथा उत्तरी भारत के राजाओं के बीच युद्ध हुआ । इस युद्ध में मिहिरकुल पकड़ा गया । बालादित्य उसका वध करना चाहता था , परन्तु उसने अपनी मां के कहने पर मिहिरकुल को छोड़ दिया ।

मिहिरकुल ने कश्मीर के राजा की शरण ली । कुछ समय के पश्चात राजा का वध करके वह स्वयं सिंहासन पर बैठ गया । इसके पश्चात् उसने गान्धार को भी विजय कर लिया । मिहिरकुल सम्भवतः शिव का उपासक था । ग्वालियर के शिलालेख में बताया गया है कि मिहिरकुल ने सूर्य का मन्दिर बनवाया था । इससे सिद्ध होता है कि वह सूर्य का उपासक भी था बौद्ध धर्म के अनुयायियों के साथ उसका व्यवहार बहुत खराब था । उसने बौद्ध धर्म के अनेक मठों तथा स्तूपों को नष्ट करवा दिया । मिहिरकुल की मृत्यु 542 ई ० में हुई थी ।

4. हूणों का अन्त -The end of the Hunas – मिहिरकुल की मृत्यु के साथ ही भारत में हूणों का प्रभुत्व तथा साम्राज्य समाप्त हो गया था , परन्तु सातवीं शताब्दी तक छोटे – छोटे हूण राजा उत्तरी – पश्चिमी भारत तथा पंजाब के कुछ भागों पर राज्य करते रहे । धीरे – धीरे यह जाति राजपूतों में मिल गई और ग्यारहवीं शताब्दी तक वे पूरी तरह हिन्दू बन गए । इस प्रकार भारत में हूणों का पूर्णतया अन्त हो गया ।

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