महाकाव्य तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व रामायण एव महाभारत

महाकाव्य तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व – The Epics and their Historical Importance

महाकाव्य तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व-महाकाव्य काल से हमारा अभिप्राय उस काल से है जिसकी जानकारी के स्रोत ‘ रामायण ‘ तथ हुए ‘ महाभारत ‘ नामक पवित्र ग्रन्थ हैं । इस युग में राम के आदर्श देखने को मिले , कृष्ण की कूटनीति के दर्शन तथा ‘ राम – रावण ‘ और ‘ कौरव – पाण्डव ‘ आदि विरोधी शक्तियों का परिचय मिला । हमारी आंखों के सम्मुख एक आदर्श समाज का चित्र खिंच जाता है । इस युग के अपने गुण भी थे तथा अवगुण भी । इस युग से सम्बन्धित तथ्य का वर्णन इस प्रकार है I.

महाकाव्य तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व

रामायण  (The Ramayana )

1. साधारण परिचय ( General Introduction ) -रामायण हिन्दुओं का प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । आरम्भ में यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया था , परन्तु अब इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है । रामायण में लगभग 24000 श्लोक हैं तथा यह सात काण्डों में विभक्त है ।

2. रामायण की कथा ( Story of the Ramayana ) – रामायण की कथा का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है बहुत समय पूर्व आधुनिक अवध में कौशल जाति का राजा दशरथ राज्य करता था । उसकी राजधानी अयोध्या थी । दशरथ की तीन रानियां थीं- कौशल्या , सुमित्रा तथा कैकेयी । राम , लक्ष्मण , भरत तथा शत्रुघ्न नामक उसके चार पुत्र थे । राम सबसे बड़ी रानी कौशल्या से , लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न सुमित्रा से तथा भरत कैकेयी से उत्पन्न हुआ । था ।

राम का विवाह मिथिला के राजा जनक की पुत्री सीता के साथ हुआ । राजा दशरथ ने अपनी वृद्धावस्था में अपने बड़े पुत्र राम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना चाहा था । परन्तु कैकेयी अपने बेटे भरत को युवराज बनाना चाहती थी ।

उसने हठ करके दशरथ से राम को 14 वर्ष के लिए वनों में भेजने का वचन ले लिया । आज्ञाकारी राम ने पिता की आज्ञा पाकर 14 वर्ष के लिए वन की ओर प्रस्थान किया । उसका छोटा भाई लक्ष्मण तथा उसकी पत्नी सीता भी उसके साथ गई । दशरथ उनके वियोग को सहन न कर सका और शीघ्र ही उसका देहान्त हो गया । उसकी के मृत्यु उपरान्त अयोध्या का राजसिंहासन खाली हो गया ।

जब भरत ननिहाल से अयोध्या पहुंचा तो उसे राम वनवास जाने का समाचार मिला । उसे राजगद्दी पर बैठने के लिए विवश किया गया । परन्तु भ्रातृ – प्रेम के भूखे भरत का मन भाई के लिए व्याकुल हो उठा । वह यह नहीं चाहता था कि उसका बड़ा भाई तो जंगलों की खाक छानता फिरे और वह स्वयं राजसिंहासन के सुख भोगे ।

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अतः वह राजसिंहासन ठुकरा कर राम की खोज में जंगलों में निकल पड़ा । राम के पास पहुंच कर भरत ने उसे अयोध्या वापस लाने का भरसक प्रयास किया । परन्तु राम ने पितृ आज्ञा पूर्ण किए बिना वापस आने से इन्कार कर दिया । अन्त में भरत राम की चरण पादुकाएं ले आया और उन्हें राम का स्वरूप जानकर राजगद्दी पर रख दिया । तदुपरान्त वह स्वयं राम के वापस आने तक उसके प्रतिनिधि के रूप में राज्य की देखभाल करने लगा ।

महाकाव्य तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व

वनवास में रहते हुए एक दिन लंका नरेश रावण पंचवटी से सीता को छल से चुराकर ले गया । लंका में रहकर पतिव्रता सीता ने प्रत्येक क्षण राम की याद में ही बिताया । राम और लक्ष्मण ने हनुमान जी के सहयोग से लंका पर आक्रमण कर दिया । इस युद्ध में लंका नरेश रावण मारा गया । इस प्रकार राम अपनी पत्नी को स्वतन्त्र करवाने में सफल हो गए । अब वनवास का समय भी पूर्ण हो चुका था । अतः वे अयोध्या लौट आए ।

अयोध्यावासियों ने सीता की पवित्रता पर सन्देह प्रकट किया । परिणामस्वरूप सीता को एक बार फिर वनों की खाक छाननी पड़ी । उसने महर्षि वाल्मीकि की कुटिया में आश्रय लिया , जहां उसने लव और कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया । इधर राम ने अश्वमेध यज्ञ रचाया । यज्ञ के घोड़े को लव और कुश ने पकड़ लिया । इस कारण उन्हें राम की सेना के साथ युद्ध करना पड़ा । युद्ध में इनकी वीरता ने सिद्ध कर दिया कि वे राम के ही पुत्र हैं ।

अयोध्यावासियों को भी सीता की चारित्रिक शुद्धता पर विश्वास हो गया था । परन्तु जब राम ने उसे पुनः ग्रहण करना चाहा तो वह सदा के लिए धरती माँ की गोद में समा गई ।

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3. क्या रामायण ऐतिहासिक सत्य है ? ( Is the Ramayana a Historical Truth ?) – कुछ विदेशी विद्वान् रामायण की कथा – वस्तु की वास्तविकता को ऐतिहासिक सत्य नहीं मानते । डॉ ० वी ० ए ० स्मिथ तो यहां तक कहते हैं कि , ” यह काव्य ( रामायण ) मूलतः कल्पना पर रचा गया है , जो सम्भवतः कौशल राज्य और उसकी राजधानी अयोध्या की धूमिल परम्पराओं पर आधारित है । ” यद्यपि यह माना जा सकता है कि रामायण को प्रभावशाली बनाने के लिए सम्भवतः कवि ने कल्पना की उड़ान का सहारा लिया हो , फिर भी हम डॉ ० स्मिथ के इस मत से पूर्णतया सहमत नहीं हो सकते ।

इसका कारण यह है कि रामायण में वर्णित राम और जनक नामक व्यक्ति ऐतिहासिक ही हैं । अयोध्या नगरी और कौशल जाति भी इतिहास से सम्बन्धित है । अतः विदेशियों का यह विचार कि रामायण केवल एक कवि की कल्पना का ही परिणाम है , उचित नहीं है ।

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2 . महाभारत ( The Mahabharata )

1. साधारण परिचय ( General Introduction ) — महाभारत भी हिन्दुओं का एक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण धार्मिक ग्रन्थ है । इसकी रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी । इसमें 19 पर्व और 1 लाख श्लोक हैं । इस महाकाव्य में कौरवों तथा पाण्डवों के मध्य युद्ध का वर्णन किया गया

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2 .महाभारत की कथा ( Story of Mahabharata ) – महाभारत की कथा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है बहुत समय पूर्व गंगा और यमुना के मध्यवर्ती प्रदेश में भारतवंश का राज्य था । विचित्रवीर्य इस वंश का एक प्रसिद्ध राजा था । उसके दो पुत्र थे – पाण्डु तथा धृतराष्ट्र विचित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका बेटा पाण्डु राजगद्दी पर बैठा । उसके पांच लड़के थे जो पाण्डव कहलाए ।

इनके नाम थे– युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल तथा सहदेव । पाण्डु शीघ्र ही पांच अबोध बालकों को संसार में अकेला छोड़कर चल बसा । उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका बड़ा भाई धृतराष्ट्र उसका उत्तराधिकारी बना । उसके सौ पुत्र थे , जो कौरव कहलाए । धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों के साथ – साथ अपने भतीजों को भी उच्च शिक्षा दिलवाई । कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था । दुर्योधन और उसके भाई पाण्डवों से ईर्ष्या करते थे । धृतराष्ट्र ने अपनी वृद्धावस्था में अपने भतीजे युधिष्ठिर को योग्य जान कर सिंहासन सौंपना चाहा । परन्तु दुर्योधन अपने पिता की इच्छा पर भड़क उठा ।

उसने एक षड्यन्त्र द्वारा पाण्डवों को वनवास दिलवा दिया । वनों में घूमते – घूमते वे पांचाल देश पहुंचे , जहां पर राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर रचाया जा रहा था । अर्जुन ने मछली भेद कर स्वयंवर में विजय प्राप्त की । द्रौपदी का विवाह पांचों पाण्डव भाइयों के साथ कर दिया गया । पांचाल देश के राजा के सहयोग से पाण्डवों ने कौरवों से आधा राज्य प्राप्त कर लिया ।

उन्होंने दिल्ली के समीप इन्द्रप्रस्थ नामक एक नवीन नगर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया । कौरव उनकी बढ़ती हुई शक्ति को सहन न कर सके । वे पाण्डवों के विनाश का कोई ठोस उपाय ढूंढ़ने लगे । दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए उकसाया । युधिष्ठिर उसकी चाल में फंस गया । पाण्डव अपना सर्वस्व जुए में हार बैठे । यहां तक कि वे द्रौपदी को भी हार गए । परिणामस्वरूप उन्हें 13 वर्ष के लिए पुनः वनों की खाक छाननी पड़ी ।

वनवास काल समाप्त होने पर युधिष्ठिर ने दुर्योधन से अपना राज्य वापस मांगा । परन्तु दुर्योधन ने राज्य वापस करने से स्पष्ट इन्कार कर दिया । विवश होकर पाण्डवों ने यदुवंश के राजा कृष्ण और मत्स्य देश के राजा विराट की सहायता से कौरवों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया । कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों पक्षों की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ । यहीं पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का पावन उपदेश दिया ।

18 दिन के घमासान युद्ध के पश्चात् सभी कौरव मारे गए । यह युद्ध इतिहास में ‘ महाभारत के युद्ध ‘ के नाम से प्रसिद्ध है । युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर राजा बना और उसने हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया । अन्त में पाण्डव अर्जुन के पोते परीक्षित को राजगद्दी सौंप कर स्वयं हिमालय की ओर चले गए ।

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3. क्या महाभारत एक ऐतिहासिक सत्य है ? ( Is the Mahabharata Historically true ? ) – कुछ विदेशी विद्वान् रामायण की तरह महाभारत की ऐतिहासिक सत्यता पर भी सन्देह प्रकट करते हैं । वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि महाभारत के कुछ व्यक्ति अवश्य ही ऐतिहासिक हैं ।

परन्तु साथ में यह भी कहते हैं कि इस महाकाव्य की घटनाओं को ऐसा तोड़ – मोड़ कर प्रस्तुत किया गया है कि इसकी सत्यता अन्धेरे के आंचल में आई है । वे अपने विचारों के पक्ष में निम्नलिखित बातें कहते हैं कि दो भाइयों में युद्ध में ( i ) महाभारत की कथावस्तु के मुख्य – पात्र कौरव और पाण्डव भाई थे । परन्तु वैदिक साहित्य में कौरवों ( कुरु ) का तो काफ़ी उल्लेख मिलता है , पाण्डवों का कहीं भी वर्णन नहीं आता । यह कैसे सम्भव से एक का नाम तो बार – बार लिया जाए , परन्तु दूसरे के नाम की उपेक्षा कर दी जाए ?

( ii ) महाभारत के अनेक सहायक राजाओं का उल्लेख मिलता है , जो दूर – दूर से कौरवों अथवा पाण्डवों की सहायता के लिए आए । यह बात भी विश्वसनीय नहीं जान पड़ती । इसका कारण यह है कि दो कबीलों के परस्पर युद्ध में अन्य स्वतन्त्र ● राजाओं को भाग लेने की क्या आवश्यकता थी ?

( iii ) इस युद्ध के सहायक राजा भी समकालीन नहीं थे । हैं , परन्तु मुख्य रूप से यह ग्रन्थ ऐतिहासिक है । इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर ऐतिहासिक स्थान हैं । इसी प्रकार श्रीकृष्ण उपरोक्त सभी बातों को दृष्टि में रखते हुए हमें यह मानना ही पड़ेगा कि महाभारत में कुछ घटनाएं काल्पनिक और अर्जुन भी ऐतिहासिक पुरुष हैं । अतः स्पष्ट है कि महाभारत की कथावस्तु काफ़ी सीमा तक ऐतिहासिक है । 

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