पुनः एकीकरण की परिभाषा बताइये तथा इसके क्या प्रभाव होते हैं ?
पुनः एकीकरण की परिभाषा बताइये तथा इसके क्या प्रभाव होते हैं ? किसमें पुनः संयोजन हो सकता है ? Give the definition of reintegration and what are its effects? What can recombine?
पुनः एकीकरण की परिभाषा – विभाजन के बाद यदि पृथक् हुए सदस्य पुनः एक साथ संयुक्त रूप से रा प्रारम्भ कर देते हैं तो इन्हें पुनः एकीकरण कहा जाता है । मिताक्षरा , दायभाग तथा मद्रास शाखा के मतों के अनुसार यदि किसी संयुक्त परिवार का कोई सदस्य पृथक् हो गया है तो वह केवल , पिता , भाई अथवा चाचा के साथ ही पुनः एकीकरण कर सकता है अन्य किसी रिश्तेदार के साथ नहीं ।
मिताक्षरा इस प्रकार वृहस्पति के पाठ का शाब्दिक अर्थ लेता है और वृहस्पति द्वारा उल्लिखित सम्बन्धियों जिसके साथ पुनः एकीकरण हो सकता है , को निर्देशात्मक न मान कर पूर्ण मानता है अर्थात् इसके अतिरिक्त अन्य किसी के साथ पुनः एकीकरण नहीं हो सकता है , परन्तु मिथिला तथा मयूख शाखा के अनुसार गिता , भाई तथा चाचा शब्दों का उपयोग उदाहरणार्थ किया गया है तथा पुनः एकीकरण उन सभी अन्य व्यक्तियों के साथ हो सकता है जो प्रारम्भिक विभाजन में पक्षकार रहे हों ।
मिताक्षरां एवं वृहस्पति दोनों के आधार पर , प्रिवी कौंसिल ने रामनरायण चौधरी बनाम पान कुँवर के बाद में यह निर्णीत किया है कि पुनर्मिलन केवल विभाजन के पक्षकारों में ही हो ‘ सकता है और वह पुनर्मिलन विधितः
( क ) पिता पुत्र में ,
( ख ) भाई – भाई में और ,
( ग ) ” चाचा – भतीजा ” में ही सम्भव है ।
जिस प्रकार बँटवारा होने तक अविभक्त रहने की कल्पना की जाती है , उसी प्रकार बँटवारा हो जाने पर पुनः एकीकरण के विरुद्ध उपधारा की जाती है । अतः पुनः एकीकरण को साबित करने के लिए स्पष्ट और सशक्त प्रमाण की आवश्यकता होती है । इसलिए सहदायिक के बीच पुनः एकीकरण होने की अभिव्यक्ति अथवा विवादित कोई समझौता या संविदा होना आवश्यक है
मनोरमा बनाम रमाबाई के बाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि ” जहाँ पुनः एकीकरण के दो पक्षकारों में एक पक्षकार प्रारम्भिक विभाजन में पक्षकार या किन्तु दूसरे पक्षकार का पुत्र था जिसको लेकर वह पृथक् हुआ था वहाँ पुनः एकीकरण को वैध माना जायेगा ।
भिखारी चरन नायक बनाम भावावेव के बाद में उड़ीसा उच्च न्यायालय के यह मत अभिनिर्धारित किया है कि ” पुनः एकीकरण प्रारम्भिक के पक्षकारों के बीच किसी सहभागी दत्तक ग्रहीता पौत्र के द्वारा जो अपने पिता के साथ रह रहा है और शाखा के सकता है । अतः अंश को संयुक्त रूप से धारण करता है , पुनः एकीकरण नहीं कराया जा सकता है ।
पुनः एकीकरण के लिये किसी लिखा – पढ़ी की आवश्यकता नहीं होती है , केवल पुनः एकीकरण करने वाले सदस्यों की इच्छा ही पर्याप्त होती है । पुनः एकीकरण के समय पारिवारिक सम्पत्ति का होना जरूरी नहीं है । यदि पारिवारिक सम्पत्ति नहीं है तब भी पुनः एकीकरण हो सकता है । नाबालिग द्वारा पुनः एकीकरण नहीं हो सकता है क्योंकि वह इसके लिए सक्षम नहीं है ।
पुनः एकीकरण का प्रभाव — इसका प्रभाव यह होता है कि परिवार की स्थिति फिर से संयुक्त हो जाती है और परिवार के सदस्य एक संयुक्त परिवार के सदस्य हो जाते हैं । लेकिन पुनः संयुक्त हुए सहभागीदारों की पृथक् सम्पत्ति पुनः सहभागदीरों पर उत्तरजीवित ( survivership ) के अनुसार नहीं जाती है , परन्तु उत्तराधिकार द्वारा उत्तराधिकारियों को निगमित होती है । पुनः एकीकरण द्वारा सहभागीदारी तथा जन्म से सहभागीदारी में कोई अन्तर नहीं है । दाय के विशेष निर्णय केवल पुनः संयोजित सदस्यों की पृथक् सम्पत्ति को लागू होंगे ।